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Durga Maa ki Aarati: jay ambe ji ki aarti,जय अंबे गौरी आरती

दुर्गा जी की आरती: जय अम्बे गौरी आरती भक्ति और आध्यात्मिकता की मिसाल

दुर्गा जी की आरती, हिन्दू धार्मिक आचार-विचार में एक अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है, जो भक्ति और देवी के प्रति श्रद्धाभाव का अद्वितीय अभिव्यक्ति है। नवरारात्र में आरती की गूंज आपको सारे देश में जोरशोर से सुनाई देती है. यह धार्मिक संगीत हर पीढ़ी के हृदय को छूने वाला है और इसमें छिपी आध्यात्मिकता वशीभूत करनेवाली है।

दुर्गा जी की आरती के मोहक स्वरों में खो जाइए, जहां प्रत्येक स्वर देवी के प्रति श्रद्धाभाव की अद्वितीय प्रस्तुति बनता है। प्रेम और भक्ति से बुने गए इस आरती के प्रत्येक शब्द ध्यान का कारक है।

आरती के छंदों में छिपे प्रतीको से जीवन में समृद्धि और उसके बाद शांति और मुक्ति देने वाली है, जो आध्यात्मिक संबंध को गहराई से समझाने वाले अर्थों को खोलने में सहायक हैं। हर शब्द आध्यात्मिक महत्व से गूंथा हुआ लगता है।

दुर्गा जी की आरती के चारों ओर होने वाली विधियों और रीतियों में वैज्ञानिकता की खोज करें, प्रमाणीय दीपक जलाने से लेकर पूजाओं के विभिन्न सोपान। इन रीतियों के सार को समझें जो भक्ति को बढ़ाते हैं।

देखें कैसे दुर्गा जी की आरती सांसारिकता से पार जाकर, आध्यात्मिकता को अपने शुद्ध रूप में उत्कृष्ट बनाती है। यह एक साधक के हृदय को देवी के साथ जोड़ने का एक साधन है।

दुर्गा जी की आरती के छंदों के माध्यम से, इसके दीर्घकालिक प्रभाव को मानिए—एक प्रकाश की ओर जो हजारों आत्माओं को आध्यात्मिक पूर्णता और देवी की कृपा की ओर मार्गदर्शन करता है।


Durga Maa Aarti Lyrics in hindi

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। 

तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।

जय अम्बे गौरी,…।

मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को। 

उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।।

जय अम्बे गौरी,…।

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। 

रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।

जय अम्बे गौरी,…।

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी। 

सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।।

जय अम्बे गौरी,…।

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। 

कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।।

जय अम्बे गौरी,…।

शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती। 

धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।

जय अम्बे गौरी,…।

चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे। 

मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।

जय अम्बे गौरी,…।

ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी। 

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।

जय अम्बे गौरी,…।

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू। 

बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।

जय अम्बे गौरी,…।

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। 

भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।।

जय अम्बे गौरी,…।

भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी। 

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।

जय अम्बे गौरी,…।

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। 

श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।।

जय अम्बे गौरी,…।

अम्बेजी की आरती जो कोई जन गावै। 

कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।।

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।

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