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आरती श्री हनुमान जी की: आरती कीजे हनुमान लला की

 श्री हनुमान जी की आरती: भक्ति की ऊर्जा और आशीर्वाद


श्री हनुमान जन्मोत्सव, मंगलवार व्रत, शनिवार पूजा, बूढ़े मंगलवार और अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से गाये जाने वाली श्री हनुमान आरती है।

श्री हनुमान जी की आरती, एक शक्तिशाली आराधना है जो उनके भक्तों को सुख, शांति, और आशीर्वाद प्रदान करती है। यहां  हम श्री हनुमान जी की आरती के महत्व, उपास्यता, और इसमें प्रयुक्त कुंजिका मंत्र के प्रभाव को जानेंगे।

आरती, एक आध्यात्मिक अनुष्ठान, हनुमान जी की कृपा और आशीर्वाद को आमंत्रित करती है। यह आरती न केवल उनके वीरता और बल पर महत्वपूर्ण रूप से ध्यान केंद्रित करती है, बल्कि भक्त को आत्मिक शक्ति और शांति प्रदान करती है।

हनुमान जी की आरती के प्रमुख श्लोकों का विशेष, जो भक्तों के दिलों को छू जाते हैं और उन्हें दिव्य अनुभूति में ले जाते हैं।

कुंजिका मंत्र, जो आरती के एक हिस्से के रूप में प्रयुक्त होता है, का विशेष महत्व है। इस मंत्र का अर्थ और इसका प्रभाव अत्यंत प्रभावी है।

आरती के शब्दों में छिपे भक्त के हृदय से हनुमान जी के संवाद को खोजें, जो उनकी विशेषता और शक्ति को दर्शाता है। हनुमान जी की आरती में आराधना की गहराईयों में छिपे आध्यात्मिक संबंध को जानने के लिए आरती के श्लोकों का विश्लेषण करें।

हनुमान जी की आरती के माध्यम से, भक्त अपनी आत्मा की ऊँचाईयों की ओर प्रस्थान करता है, जो उसे सांसारिक और आध्यात्मिक सफलता में मार्गदर्शन करता है।

श्री हनुमान जी की आरती के अनुष्ठान के असीमित लाभ है, जिससे भक्त इसे नियमित रूप से करके अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। इसे नियमित रूप से प्रतिदिन एक बार या पांच या सात बार करके भक्त अपने जीवन को सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर सकते है 

हनुमान जी आरती 

Shri Hanuman Ji aarti bhajan


॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥

मनोजवं मारुत तुल्यवेगं,

जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥

वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं,

श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥


॥ आरती ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ।

दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥


जाके बल से गिरवर काँपे ।

रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥

अंजनि पुत्र महा बलदाई ।

संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ॥


दे वीरा रघुनाथ पठाए ।

लंका जारि सिया सुधि लाये ॥

लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।

जात पवनसुत बार न लाई ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ॥


लंका जारि असुर संहारे ।

सियाराम जी के काज सँवारे ॥

लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।

लाये संजिवन प्राण उबारे ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ॥


पैठि पताल तोरि जमकारे ।

अहिरावण की भुजा उखारे ॥

बाईं भुजा असुर दल मारे ।

दाहिने भुजा संतजन तारे ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ॥


सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।

जय जय जय हनुमान उचारें ॥

कंचन थार कपूर लौ छाई ।

आरती करत अंजना माई ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ॥


जो हनुमानजी की आरती गावे ।

बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥

लंक विध्वंस किये रघुराई ।

तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥


आरती कीजै हनुमान लला की ।

दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

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